Monday, October 1, 2012

ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति : हाकिंग के शब्दों में


प्रो. हॉकिंग ने 13 मार्च 2007 में यूनिवर्सिटी आफ कैलीफोर्निया, बर्कले में छात्रों को संबोधित करते हुए ये मशहूर व्याख्यान  ‘ओरिजिन आफ यूनिवर्स’ दिया था, जो बाद में उनकी एक किताब का आधार भी बना।
हम यहां क्यों हैं ? हम कहां से आए हैं ? सेंट्रल अफ्रीका के बोशोंगो लोगों के मुताबिक, मानव जाति के आगमन से पहले दुनिया में केवल तीन चीजें थीं, गहरा अंधेरा, पानी और महान देवता बुंबा। एक दिन बुंबा के पेट में तेज दर्द उठा जिससे उन्हें उल्टी हुई। इस उल्टी के साथ सूरज बाहर निकल पड़ा। सूरज की तेज गर्मी से कुछ पानी सूख गया, जिससे जमीन सामने आई। लेकिन पेट से सूरज के निकलने के बावजूद बुंबा की तबीयत ठीक नहीं हुई और एक के बाद उल्टियों के साथ उनके मुंह से चंद्रमा, सितारे और उसके बाद तेंदुए, मगरमच्छ, कछुए और अंत में मानव निकल पड़े।
सृष्टि और जीवन की शुरुआत को लेकर अलग-अलग संस्कृतियों में प्रचलित मिथकों में से ये भी एक मिथ है। लेकिन ये सभी मिथक ऐसे बहुत से सवालों से जूझते रहे हैं, जिनके जवाब तलाशने की कोशिश हम अब भी कर रहे हैं। अब जाकर हम पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं कि इन मूलभूत सवालों के जवाब पौराणिक संदर्भों में नहीं बल्कि साइंस में छिपे हैं। अपने अस्तित्व से जुड़े रहस्यों की बात करें तो इसके पहले वैज्ञानिक साक्ष्य की खोज करीब 92 साल पहले की गई थी, जब 1920 में एडविन हब्बल ने लॉस एंजिल्स काउंटी में मौजूद माउंट विल्सन ऑब्जरवेटरी के 100 इंच टेलिस्कोप से अपने मशहूर ऑब्जरवेशंस की शुरुआत की थी। आकाशगंगाओं से आ रही रोशनी को माप कर हब्बल उनकी गति की गणना कर सके। उन्होंने देखा कि कुछ आकाशगंगाएं हमारे पास आ रही हैं, जबकि कुछ हमसे दूर छिटकती चली जा रही हैं। हब्बल ये देखकर आश्चर्य से भर उठे थे कि करीब सभी आकाशगंगाएं गतिशील हैं। उन्होंने देखा कि ज्यादा फासले वाली आकाशगंगाएं ज्यादा तेज गति से दूर भाग रही हैं। गतिशील और लगातार फैलते जा रहे ब्रह्मांड की खोज 20वीं सदी की सबसे महान खोज है। इस खोज ने ब्रह्मांड के बारे में सदियों से जारी बहस की दिशा ही मोड़ दी। लोग अब ये सोंचने पर मजबूर हो गए कि क्या ब्रह्मांड की कोई शुरुआत भी थी? अगर आकाशगंगाएं आज दूर भाग रही हैं, तो शायद कल वो एक-दूसरे के करीब थीं। अगर उनकी गति स्थिर थी, तो अलमारी में तहाकर रखे गए कपड़ों की तरह, अरबों साल पहले उन्हें एक-दूसरे के ऊपर होना चाहिए था। क्या ब्रह्मांड की शुरुआत इसी तरह से हुई ?
ब्रह्मांड की शुरुआत का विचार लोगों को कभी ठीक नहीं लगा। उदाहरण को तौर पर मशहूर यूनानी दार्शनिक अरस्तु को यकीन था कि ब्रह्मांड का अस्तित्व शाश्वत है। अमरता का विचार हमेशा से लोगों को कहीं ज्यादा विश्वसनीय लगता है, बजाय इसके कि किसी चीज का निर्माण हुआ। निर्माण या शुरुआत का विचार इसलिए भी अखरता था क्योंकि उस वक्त लोग इसकी तुलना बाढ़ या दूसरी प्राकृतिक आपदाओं से बर्बाद होते शहरों और फिर से उनके पुनर्निर्माण से करते थे। यानि अगर ब्रह्मांड की शुरुआत हुई है, तो इसका मतलब ये भी हुआ कि इससे पहले उसका खात्मा हो चुका था। शाश्वत ब्रह्मांड में यकीन की वजह धार्मिक भी थी, कोई इस विश्वास को तोड़ना नहीं चाहता था कि एक सर्वशक्तिमान बाहरी एजेंसी ‘ईश्वर’ ने ब्रह्मांड को उत्पन्न किया और इसे वर्तमान शक्ल बक्श दी।
अब अगर आप कहें कि ब्रह्मांड की शुरुआत हुई थी, तो तुरंत ये सवाल उठेगा कि उस शुरुआत से पहले क्या हुआ था ? मैं पूछना चाहूंगा कि इस ब्रह्मांड को रचने से पहले ईश्वर क्या कर रहा था? क्या वो ऐसे सवाल पूछने वाले लोगों के लिए नर्क तैयार करने में व्यस्त था ? ब्रह्मांड की शुरुआत हुई या नहीं जर्मन दार्शनिक इमानुएल कांट के लिए ये बहुत बड़ा सवाल था। उनका मानना था कि दोनों ही मान्यताओं में कई तार्किक अंतरविरोध मौजूद हैं। अगर मान लें कि ब्रह्मांड की शुरुआत हुई थी, तो फिर उसने शुरुआत के लिए अनंत काल तक इंतजार क्यों किया ? कांट ने इसे ‘थेसिस’ का नाम दिया। दूसरी तरफ, अगर ब्रह्मांड का वजूद शाश्वत काल से है, तो फिर वर्तमान स्थिति तक आने के लिए इसने अनंत समय क्यों लिया? कांट ने इस विचार को ‘एंटीथेसिस’ कहा। ‘थेसिस’ और ‘एंटीथेसिस’ दोनों ही कांट की परिकल्पनाएं थीं, जैसा कि उस वक्त के और भी लोगों का मानना था कि समय निरपेक्ष और अपरिवर्तनशील है। यानि समय अनंत भूतकाल से होते हुए अनंत भविष्य की ओर बढ़ा चला जा रहा है। लोगों का मानना था कि समय इससे अप्रभावित है कि उसकी पृष्ठभूमि में किसी ब्रह्मांड का अस्तित्व है या नहीं।
समय की निरपेक्ष तस्वीर अब भी कई वैज्ञानिकों को लुभाती है। 1915 में आइंस्टीन ने जनरल थ्योरी आफ रिलेटिविटी’ का क्रांतिकारी सिद्धांत पेश किया। इसके बाद स्पेस और टाइम किसी घटना के लिए स्थिर बैकग्राउंड जैसे अपरिवर्तनशील और निरपेक्ष नहीं रह गए। इसके बजाय वो बेहद प्रभावशाली मात्राएं बन गईं ब्रह्मांड में जिनकी रूपरेखा पदार्थ और ऊर्जा से तय होती है। स्पेस और टाइम की व्याख्या केवल ब्रह्मांड के भीतर ही मुमकिन है, इसलिए ब्रह्मांड के जन्म से पहले टाइम की बात करना बिल्कुल बेमानी हो गया।
उस वक्त, ब्रह्मांड की शुरुआत के विचार से बहुत से वैज्ञानिक खुश नहीं थे, क्योंकि लग रहा था कि फिजिक्स के नियम ढह जाएंगे। अब समाधान के लिए बाहरी एजेंसी की मदद की जरूरत महसूस होने लगी, जिसे आप सुविधा के लिए ‘ईश्वर’ पुकार सकते हैं। अब तो बस ये ईश्वर’ ही बता सकता था कि ब्रह्मांड की शुरुआत कैसे हुई ? ब्रह्मांड की शुरुआत की कल्पना भी उन दिनों बेहद मुश्किल थी, लेकिन हब्बल के नतीजे झुठलाए नहीं जा सकते थे। इसलिए कुछ ऐसे तर्क गढ़े गए कि ठीक है वर्तमान में ब्रह्मांड फैल रहा है, लेकिन इसकी शुरुआत कभी नहीं हुई। इस सिलसिले में सबसे मजबूत तर्क 1948 में ‘स्टडी स्टेट थ्योरी’ के नाम से सामने आया। ‘स्टडी स्टेट थ्योरी’ के मुताबिक ब्रह्मांड हमेशा से था और हमेशा ऐसा ही नजर आता रहेगा। लेकिन इस थ्योरी का परीक्षण नहीं किया जा सकता था, इसलिए ये अवैज्ञानिक बात ज्यादा लंबे समय तक नहीं चल सकी।
ब्रह्मांड की शुरुआत हुई थी, इस सिद्धांत को खारिज करने के लिए एक और जबरदस्त कोशिश की गई। एक सुझाव ये रखा गया कि ब्रह्मांड का एक शुरुआती संकुचन काल भी था। लेकिन लगातार घूर्णन और कुछ दूसरी असमानताओं के कारण सारा पदार्थ एक ही जगह इकट्ठा नहीं रह सका, बल्कि पदार्थ के अलग-अलग हिस्से हो गए और अनंत घनत्व के साथ ब्रह्मांड का विस्तार एक बार फिर होगा। दरअसल ये दावा दो रूसी वैज्ञानिकों लिफशिट्ज और ख्लातनिकोव का था, कि उन्होंने साबित कर दिया है कि असमानताओं के साथ होने वाला असंतुलित संकुचन, घनत्व को अपरिवर्तित रखते हुए हमेशा एक उछाल की ओर ले जाएगा। मार्क्सवादी-लेनिनवादी तार्किक भौतिकवाद के लिए ये नतीजे काफी सुविधाजनक थे, क्योंकि इनसे ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में असुविधाजनक सवाल टाले जा सकते थे। इसलिए ये तर्क सोवियत वैज्ञानिकों के लिए ‘आर्टिकिल आफ फेथ’ बन गया।
लिफशिट्ज और ख्लातनिकोव ने जब अपना ये दावा प्रकाशित कराया, उस वक्त मैं महज 21 वर्षीय शोध छात्र था और अपनी पीएचडी थीसिस पूरी करने के लिए ‘कुछ’ तलाश कर रहा था। उनके तथाकथित सबूत पर मैंने विश्वास नहीं किया और रोजर पेनरोज के साथ मिलकर इस सवाल का अध्ययन करने के लिए गणित के एक नए समीकरण को विकसित करने में जुट गया। हमने साबित कर दिखाया कि ब्रह्मांड किसी गेंद की तरह उछल नहीं सकता, जैसा कि रूसियों को यकीन था। रोजर पेनरोज के साथ मैंने ये दिखाया कि अगर आइंस्टीन की जनरल थ्योरी आफ रिलेटिविटी सही है, तो एक सिंगुलैरिटी की स्थिति भी होनी चाहिए, यानि अनंत घनत्व और स्पेस-टाइम कर्वेचर वाला एक ऐसा बिंदु, जहां से समय की शुरुआत होती है।
एक बेहद सघन शुरुआत के साथ ब्रह्मांड का जन्म हुआ, हमारे इस विचार के पक्ष में सबसे ठोस ऑब्जर्वेशन सबूत मेरे पहले सिंगुलैरिटी नतीजों के कुछ महीने बाद, अक्टूबर 1965 में सामने आए। जब हमने पूरे अंतरिक्ष में माइक्रोवेव बैकग्राउंड के धुंधले से अवशेष ढूंढ़ निकाले। ये माइक्रोवेव बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी कि आपकी रसोई में रखे माइक्रोवेव ओवन में होती है, लेकिन ये ओवन जैसी शक्तिशाली नहीं बल्कि काफी कमजोर थी। ब्रह्मांड की इस माइक्रोवेव से आपका पिज्जा बस शून्य से 271 दशमलव 3 डिग्री सेंटीग्रेड तक ही गर्म हो सकता है। अंतरिक्ष की इस माइक्रोवेव में पिज्जा पकाने के बारे में सोंचना बेकार है। दरअसल, अंतरिक्ष की इस माइक्रोवेव को आप खुद भी देख सकते हैं, अपने टीवी को किसी खाली चैनल पर सेट कर दीजिए, अब स्क्रीन पर आप जो ‘स्नो’ जैसी चीज देखेंगे उसमें कुछ फीसदी हिस्सेदारी इस माइक्रोवेव की भी है। अंतरिक्ष के बैकग्राउंड में ये माइक्रोवेव रेडिएशन कहां से आया? इसका बस एक ही जवाब था कि ये रेडिएशन शुरुआती बेहद गर्म और सघन स्थिति का ही अवशेष है। जैसे-जैसे ब्रह्मांड का विस्तार होता गया, रेडिएशन ठंडा होता चला गया और अब ये अवशेष के रूप में मौजूद है।
हालांकि पेनरोज और मेरी बनाई सिंगुलैरिटी थ्योरम्स, ये बताती थीं कि ब्रह्मांड की एक शुरुआत भी थी, लेकिन हमारी ये थ्योरम ये नहीं बताती थी कि इसकी शुरुआत आखिर हुई कैसे? सिंगुलैरिटी प्वाइंट पर जनरल रिलेटिविटी के समीकरण ढह जाएंगे, इसलिए आइंस्टीन की थ्योरी ये नहीं बता सकती कि ब्रह्मांड की शुरुआत कैसे हुई? बल्कि, ये केवल ये बता सकती है कि एक बार शुरुआत हो जाने के बाद ब्रह्मांड किस तरह लगातार विकसित होता गया। अब लोगों के सामने दो रास्ते थे, पहला रास्ता उस तार्किक नतीजे की ओर ले जाता था जिसे पेनरोज और मैंने खोजा था। और दूसरा रास्ता सर्वशक्तिमान ईश्वर की ओर जाता था, कि उसने इस ब्रह्मांड की रचना कुछ ऐसे उद्देश्यों के लिए की जिसे हम मानव नहीं समझ सकते। ये नजरिया पोप जॉन पॉल का था।
वैटिकन में कॉस्मोलॉजी के एक कान्फ्रेंस में पोप ने प्रतिभागियों से कहा कि शुरुआत के बाद ब्रह्मांड का अध्ययन करना ठीक है, लेकिन ब्रह्मांड की शुरुआत के बारे में जांच-पड़ताल नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि ये सृष्टि की रचना का पल था, ये सर्वशक्तिमान ईंश्वर का विधान था, जो उस पल काम कर रहा था। मुझे खुशी है, कि वो नहीं समझ सके कि उसी कांफ्रेंस में मैंने एक पेपर प्रजेंट किया था, जिसमें मैंने बताया था कि इस ब्रह्मांड की शुरुआत कैसे हुई। शुक्र है कि गैलीलियो की तरह मुझे धार्मिक न्यायाधिकरण के सामने पेश होकर कार्यवाही का सामना नहीं करना पड़ा।
हमारे काम की एक और व्याख्या, जिसका समर्थन ज्यादातर वैज्ञानिकों ने किया है, वो ये है कि ब्रह्मांड के शुरुआती स्वरूप में मौजूद बेहद शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की वजह से जनरल थ्योरी आफ रिलेटिविटी ढह गई थी। उस पल, एक ऐसी थ्योरी ने इसकी जगह ले ली थी जो कहीं ज्यादा पूर्ण थी। आपको ये स्वाभाविक भी लग सकता है, क्योंकि जनरल रिलेटिविटी पदार्थ की सूक्ष्म संरचनाओं पर ध्यान ही नहीं देती। वहां क्वांटम थ्योरी का बोलबाला है। सामान्यतौर पर इसका कुछ खास मतलब नहीं है, क्योंकि माइक्रोस्कोपिक स्तर पर काम करने वाली क्वांटम थ्योरी के मुकाबले ब्रह्मांड का आकार अतुलनीय विस्तार वाला है। लेकिन जबकि ब्रह्मांड एक सेंटीमीटर के अरबों-खरबों गुना प्लांक आकार के विस्तार वाला है, यहां दोनों स्केल एकसमान हो जाते हैं और क्वांटम थ्योरी प्रभाव में आ जाती है।
ब्रह्मांड के उदभव को समझने के लिए हमें जनरल थ्योरी आफ रिलेटिविटी को क्वांटम थ्योरी के साथ मिलाने की जरूरत है। ‘सम ओवर हिस्टिरीज’ का फेनमैन का आइडिया, ऐसा करने का सबसे बढ़िया तरीका नजर आता है। रिचर्ड फेनमैन विविधताओं से भरे काफी रंगीले इंसान थे। वो पैसाडीना के एक स्ट्रिप ज्वाइंट में बोंगो ड्रम्स भी बजाते थे और कैलीफोर्निया इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी में ब्रिलियंट फिजिसिस्ट भी थे। उन्होंने बताया कि कोई सिस्टम स्थिति A से स्थिति B तक जाने में हर मुमकिन रास्ते या ‘हिस्ट्री’ की मदद लेता है।
आइंस्टीन की जनरल थ्योरी आफ रिलेटिविटी ने टाइम और स्पेस को स्पेस-टाइम के रूप में एकसाथ जोड़ दिया। लेकिन टाइम स्पेस से अलग है, ये एक गलियारे के जैसा है, जिसकी या तो एक शुरुआत होती है और एक अंत, या फिर वो हमेशा के लिए गतिमान रहता है। बहरहाल, जब कोई जनरल रिलेटिविटी को क्वांटम थ्योरी के साथ मिलाता है, जैसा कि जिम हर्टल और मैंने किया, तो हमने देखा कि चरम स्थितियों में टाइम, स्पेस में एक दूसरी दिशा की तरह बर्ताव करने लगता है।
मैंने और जिम हर्टल ने ब्रह्मांड की रचना खुद--खुद और सूक्ष्म स्तर से (the spontaneous quantum creation of the universe) होने की जो तस्वीर विकसित की है, वो काफी हद तक खौलते पानी की ऊपरी सतह पर बनते-बिगड़ते भाप के बुलबुलों जैसी है। खौलते पानी की सतह को ध्यान से देखिए, वहां भाप के कई सारे छोटे-बड़े बुलबुले बनते-बिगड़ते नजर आएंगे। छोटे बुलबुले अगले ही पल खत्म हो जाते हैं, जबकि कुछ बड़े बुलबुले लंबे समय तक खुद को बचा ले जाते हैं। आइडिया ये है कि ब्रह्मांड की सबसे संभावित ‘हिस्ट्रीज’ इन बुलबुलों के सतह के जैसी होगी। बहुत से छोटे बुलबुले बनेंगे, लेकिन वो अगले ही पल गायब भी हो जाएंगे। इन्होंने एक सूक्ष्म ब्रह्मांड को विस्तार देने में योगदान तो दिया, लेकिन फिर से खत्म भी हो गए, क्योंकि इनका आकार बेहद छोटा था। इन्हें संभावित वैकल्पिक ब्रह्मांड कहा जा सकता है, लेकिन ये कोई खास महत्व के नहीं थे, क्योंकि ये उतनी देर तक अपना अस्तित्व बनाए नहीं रख सके ताकि आकाशगंगाओं, सितारों और किसी बुद्धिमान सभ्यता को जन्म दे सकें। इन नन्हें बुलबुलों में से कुछ ने अपना आकार इतना बढ़ा लिया कि वो फिर से फूट जाने से खुद को बचा सकें। लगातार बढ़ती रफ्तार के साथ इन बुलबुलों का फैलना जारी है, हमारा ब्रह्मांड भी ऐसा ही एक बुलबुला है, जिसमें हम रह रहे हैं।
पिछले सौ साल में कॉस्मोलॉजी ने बहुत शानदार विकास किया है। जनरल थ्योरी आफ रिलेटिविटी और ब्राह्मांड के लगातार फैलने की खोज ने ब्रह्मांड की अनादि और अनंत वाली पुरानी तस्वीर उखाड़ फेंकी है। जनरल रिलेटिविटी तो कहती है कि ब्रह्मांड और खुद समय की शुरुआत भी बिगबैंग में हुई थी। इसका एक आंकलन ये भी है कि ब्लैकहोल्स में खुद समय का भी खात्मा हो जाएगा। कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड और ब्लैक होल्स के ऑब्जरवेशंस से इन गणनाओं की पुष्टि हुई है। ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ और खुद वास्तविकता को समझने में ये बहुत बड़ा योगदान है।
हालांकि जनरल थ्योरी आफ रिलेटिविटी का आंकलन है कि भूतकाल में पीरियड आफ हाई करवेचर से ब्रह्मांड आया होगा। लेकिन ये नहीं बताती कि ब्रह्मांड बिगबैंग से उत्पन्न कैसे हुआ? इसलिए जनरल रिलेटिविटी अपने आप में कॉस्मोलॉजी के इस केंद्रीय सवाल का जवाब नहीं दे सकती कि ब्रह्मांड जैसा दिखता है, वैसा क्यों है? लेकिन अगर जनरल रिलेटिविटी को क्वांटम थ्योरी के साथ मिला दिया जाए, तो ये बताना संभव है कि ब्रह्मांड की शुरुआत कैसे हुई।
बिगबैंग के साथ ब्रह्मांड का जन्म हुआ और अगले ही क्षण से ये फैलने लगा। हम ये जान चुके हैं कि शुरुआती ब्रह्मांड का विस्तार बेहद तीव्र गति के साथ हुआ। सेकेंड के बेहद सूक्ष्म हिस्से भर में ब्रह्मांड का आकार दोगुना हो गया था। लगातार प्रसार से ब्रह्मांड का आकार बहुत विशाल हो गया और निर्माण-पुर्ननिर्माण प्रक्रिया से आकाशगंगाएं समायोजित होने लगीं। हालांकि ये पूरी तरह से एक जैसा नहीं था, अलग-अलग जगहों पर विभिन्नताएं भी नजर आने लगीं। इन विभिन्नताओं से शुरुआती ब्रह्मांड के तापमान में हल्के अंतर का जन्म हुआ, जिसे हम कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड में देख सकते हैं।
तापमान में इस अंतर का मतलब ये था कि ब्रह्मांड के कुछ इलाकों के विस्तार की गति कुछ कम है। धीमी गति वाले इन इलाकों का विस्तार थम गया और पुर्निनिर्माण की प्रक्रिया से वहां आकाशगंगाओं और सितारों ने जन्म लिया और इस तरह वहां बाद में सौरमंडल भी बनने लगे। उस आदि ब्रह्मांड के वक्त से लेकर अब तक ब्रह्मांड के कोने-कोने से गुरुत्व तरंगें निर्बाध विचरण करती हुई हम तक पहुंच रही हैं। जबकि इसके विपरीत, प्रकाश मुक्त इलेक्ट्रॉन्स कि जरिए कई बार बिखरता रहता है और रोशनी का ये बिखराव तब तक जारी रहता है, जब तक कि तीन लाख साल बाद इलेक्ट्रॉन्स फ्रीज नहीं हो जाते।
कई असाधारण सफलताओं के बावजूद, सारे समाधान नहीं मिले हैं। हमें अब तक इस बात के अच्छे ऑब्जर्वेशनल सबूत नहीं मिले हैं कि धीमे पड़ने की लंबी अवधि के बाद ब्रह्मांड का फैलाव एक बार फिर तेज हो रहा है। ऐसी जानकारियों के बिना, हम ब्रह्मांड के भविष्य के बारे में सुनिश्चित नहीं रह सकते। क्या ये हमेशा के लिए फैलता रहेगा? क्या फूलते जाना या प्रसार प्रकृति का नियम है? या फिर, क्या ब्रह्मांड एक बार फिर से नष्ट हो जाएगा? नए ऑब्जरवेशनल नतीजे और सिद्धांत इन सवालों के जवाब तेजी से तलाश रहे हैं। कॉस्मोलॉजी एक बहुत जोशीला और सक्रियता से भरा विषय है।
हमारा अस्तित्व ब्रह्मांड की इन विभिन्नताओं से सीधे-सीधे जुड़ा हुआ है। अगर शुरुआती ब्रह्मांड पूरी तरह एक जैसा और बिना किसी हलचल वाला होता तो न तो सितारे जन्म लेते और न आकाशगंगाएं बनतीं। ऐसे में जीवन की शुरुआत और उसका विकास कैसे होता? हमारी संपूर्ण मानव जाति और जीवन के ये विभिन्न स्वरूप सब के सब बिगबैंग के बाद ब्रह्मांड की उसी आदि हलचल की ही देन हैं। अब भी हम युगों पुराने इन महान सवालों के जवाब की तलाश में आगे बढ़ रहे हैं और उत्तर के बेहद करीब तक भी जा पहुंचे हैं, कि हम यहां क्यों हैं ? हम कहां से आए हैं ? सवाल ये भी, कि ये सवाल पूछने वाले क्या हम अकेले हैं?

प्रस्तुति संदीप निगम

Tuesday, January 31, 2012

स्ट्रींग सिद्धांत: विज्ञान या दर्शन ?


स्ट्रींग सिद्धांत ब्रह्माण्ड के अध्ययन और व्याख्या की एक क्रांतिकारी विधि है। यह हमारे ब्रह्माण्ड के हर पहलू की व्याख्या करती है, पदार्थ का निर्माण करने वाले कण तथा पदार्थ पर प्रतिक्रिया करने बलों की वह ऊर्जा की अत्यंत सुक्ष्म तंतुओ के रूप मे सफल व्याख्या करती है। स्ट्रींग सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा के अत्यंत सुक्ष्म तंतु या तंतुवलय इस ब्रह्माण्ड के छोटे परमाण्विक कणो से लेकर विशालकाय आकाशगंगा के व्यवहार तथा संरचना को समझने की मुख्य कुंजी है।
स्ट्रींग सिद्धांत के आलोचको का मानना है कि यह सिद्धांत “थ्योरी आफ एवरीथींग” के रूप मे असफल रहा है। इसके आलोचको मे  पीटर वोइट(Peter Woit) ली स्मोलीन(Lee Smolin)फिलीप वारेन एन्डरसन(Philip Warren Anderson)शेल्डन ग्लाशो (Sheldon Glashow)लारेंस क्राउस (Lawrence Krauss), तथा कार्लो रोवेल्ली(Carlo Rovelli) जैसे बड़े नाम है।
स्ट्रींग सिद्धांत की आलोचना के मुख्य बिंदु है :
  • अत्यधिक मात्रा मे ऊर्जा की आवश्यकता से क्वांटम  गुरुत्वाकर्षण के प्रायोगिक परीक्षण मे असमर्थता।
  • अत्यधिक रूप से संभव परिणामों के कारण पूर्वानुमान  मे असमर्थता।
  • पृष्ठभूमि स्वतंत्रता (background independence) का अभाव।

अत्यधिक मात्रा मे ऊर्जा की आवश्यकता

यह माना जाता है कि क्वांटम गुरुत्वाकर्षण के किसी भी सिद्धांत के प्रायोगिक परीक्षण के लिये अत्याधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी, जो कि लार्ज हेड्रान कोलाईडर जैसे कण त्वरकों की क्षमता के बाहर है। इसके पीछे कारण यह है कि स्ट्रींग सिद्धांत की स्ट्रींग या तंतु प्लैंक दूरी से थोड़े ही बड़े होते है, जो कि प्रोटान की त्रिज्या से भी कम होती है। इतनी लघु दूरी पर के किसी भी प्रयोग के मापन हेतु अत्याधिक ऊर्जा चाहीये होती है। साधारण शब्दो मे क्वांटम गुरुत्वाकर्षण का प्रायोगिक परीक्षण कठिन है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण बल अन्य बलो की तुलना मे अत्यंत कमजोर है तथा क्वांटम प्रभाव प्लैंक स्थिरांक (h) द्वारा नियंत्रित होते है और वह भी एक सुक्ष्म राशी है जिसके फलस्वरूप क्वांटम गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव अत्यंत कमजोर होता है।

कितने ब्रह्माण्ड ?

स्ट्रींग सिद्धांत के समीकरणों का एक हल(Solution) नही है, इसके बड़ी संख्या मे हल  होते है। इन हलों को जिन्हे स्ट्रींग निर्वात(String Vaccua) कहते है। ये स्ट्रींग-निर्वात एक दूसरे से इतने भिन्न होते है कि ये कम ऊर्जा पर दृश्यमान हर संभव स्वरूप का समावेश कर सकते है।
अभी तक इस सिद्धांत की निर्वात-संरचना(Vaccua Structure) को अच्छी तरह से समझा नही जा सका है।
स्ट्रींग सिद्धांत के अनुसार भिन्न मितस्थायी(meta-stable) स्ट्रींग निर्वात की संख्या असंख्य  हो सकती है। हर  एक निर्वात मे एक ब्रह्माण्ड संभव है और इन असंख्य निर्वातो मे  से 10520* निर्वात “हमारे ब्रह्माण्ड के जैसे” है। हमारे ब्रह्माण्ड के जैसे का अर्थ है कि इनमे भी 4 आयाम(4 dimension), विशाल प्लैंक पैमाना(large Plank Scale), गाज समूह(Gauge group) तथा चीराल(chiral) फर्मीयान है।  इनमे से प्रत्येक स्ट्रींग-निर्वात एक संभव ब्रह्माण्ड से संबधित है लेकिन वह दूसरे संभव ब्रह्माण्ड से भिन्न है अर्थात दूसरे संभव ब्रह्माण्ड से भिन्न तरह के कण तथा बल से बना है। हमारे ब्रह्मांड के लिये किस स्ट्रींग-निर्वात को चुना जाये एक अनसुलझा प्रश्न है। इस सिद्धांत मे कोई भी सतत कारक (continuous parameters ) नही है, इसमे संभव ब्रह्मांडो का एक बड़ा सा समूह है जो एक दूसरे से एकदम भिन्न है।
लेकिन कुछ वैज्ञानिक इसे अच्छा मानते है क्योंकि यह हमारे ब्रह्माण्ड के विभिन्न भौतिक स्थिरांको के लिए एक प्राकृतिक और सरल स्पष्टीकरण देता है, विशेष रूप से ब्रह्मांडीय स्थिरांक की लघु मूल्य का। इसके पिछे तर्क यह है कि अधिकतर अन्य ब्रह्माण्डो मे इन भौतिक स्थिरांको का मूल्य इस तरह है कि उसमे जीवन संभव नही है, हम सबसे ज्यादा मित्रवत ब्रह्माण्ड मे रहते है। यह तर्क पृथ्वी पर जीवन पर भी लागु किया जाता है कि क्यों पृथ्वी एक मध्यम आकार के तारे सूर्य की असंख्य संभव कक्षाओ मे से केवल गोल्डीलाक क्षेत्र वाले कक्षा मे है। इस तर्क को आगे बढ़ाते हुये आकाशगंगा के अपेक्षाकृत शांत और स्थिर क्षेत्र मे सौरमंडल पर भी लागु किया जाता है।

स्ट्रींग सिद्धांत विज्ञान या दर्शन ?

कुछ भौतिक विज्ञानी जिसमे कुछ स्ट्रींग सिद्धांत के समर्थकों का  भी समावेश है मानते है कि स्ट्रींग सिद्धांत के क्रांतिकारी विचार का सामान्य विज्ञान की तरह मान्यता प्राप्त करना एक नाज़ुक धागे के द्वारा लटका हुआ है। इस सिद्धांत का मूल ’स्ट्रींग अर्थात तंतु’ किसी भी परमाण्विक कण से छोटा है और इसे देखा जाना या इसका परीक्षण कर पाना असंभव है। इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या स्ट्रींग सिद्धांत की प्रायोगिक परीक्षण संभव है ?
शेल्डन ग्लाशो
शेल्डन ग्लाशो
वैज्ञानिक तौर पर किसी भी सिद्धांत के उपयोगी तथा मान्य होने के लिये, उस सिद्धांत द्वारा ऐसे पूर्वानुमान संभव होना चाहीये जिसका परीक्षण किया जा सके। इन पूर्वानुमानो को परीक्षण द्वारा प्रमाणित करना उस सिद्धांत को सहारा देता है जबकि परीक्षण मे असफलता दर्शाती है कि सिद्धांत गलत हो सकता है। जब तक इस तरह के परीक्षण संभव नही होते है, तब तक कोई भी सिद्धांत दार्शनिक (philosophical) ही होता है ,वैज्ञानिक (scientific)  नही ! स्ट्रींग सिद्धांत आधारित गणितीय सिद्धांत भले ही कुछ अनसुलझे धारणाओं की व्याख्या करने मे सक्षम हो लेकिन परीक्षणो की अनुपस्थिति मे इसे शायद ही कभी वैज्ञानिक सिद्धांत के तौर पर मान्यता मिले।
भौतिक विज्ञानी शेल्डन ग्लासो  ने एक साक्षात्कार मे कहा था :
स्ट्रींग सिद्धांत के वैज्ञानिको के पास एक दृढ़ तथा खूबसूरत लगने वाला जटिल सिद्धांत है लेकिन वह मेरी समझ से बाहर है। इस सिद्धांत द्वारा गुरुत्वाकर्षण की व्याख्या करने वाला क्वांटम सिद्धांत प्राप्त होता है लेकिन उससे कोई भी पूर्वानुमान प्राप्त नही किया जा सकता। यह कहा जा सकता है कि इस सिद्धांत से ना कोई प्रयोग किया जा सकता है नाही कोई निरीक्षण किया जा सकता है, जिससे यह कह सके कि “आप गलत है।” यह एक सुरक्षित सिद्धांत है, हमेशा के लिये। मै आपसे पूछता हूं कि यह भौतिकशास्त्र का सिद्धांत है या दर्शनशास्त्र का ?

निर्वात ऊर्जा की व्याख्या मे असफलता

स्टीवन वेनबर्ग
स्टीवन वेनबर्ग
भौतिकशास्त्र के सामने सबसे बड़ा अनसुलझा प्रश्न है, ब्रह्मांडीय स्थीरांक(cosmological constant) अर्थात निर्वात की ऊर्जा है, इसे प्रकृति मे देखा जा चुका है लेकिन इसकी कोई व्याख्या नही है। स्ट्रींग सिद्धांत अपने क्रांतिकारी अवधारणाओ के बाद भी इसपर कोई रोशनी डालने मे असमर्थ है। यदि आप रिक्त अंतरिक्ष की समस्त ऊर्जा की गणना करे और हमारी भौतिकी द्वारा ज्ञात हर संभव तरंग का समावेश करें, एक अविश्वशीय रूप से विशालकाय ऊर्जा प्राप्त होती है, जो इतनी विशाल होती है कि उससे ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति मे विस्तार की व्याख्या संभव है। लेकिन प्रायोगिक परीक्षणो द्वारा प्राप्त निर्वात ऊर्जा का मूल्य अत्यंत कम है। कहीं कुछ ऐसी जटिल गणनाये होना चाहीये जिससे यह ऊर्जा निर्वात अंतरिक्ष मे लघु हो जाती है।
स्ट्रींग सिद्धांत से यह नही समझा जा सकता है कि निर्वात की ऊर्जा का प्रायोगिक परीक्षणो द्वारा प्राप्त मूल्य इतना कम क्यों है। स्ट्रींग सिद्धांत से इस जटिल प्रश्न के हल की आशा थी लेकिन वह भी इसे हल नही कर पा रहा है। स्टीवन वेनबर्ग के अनुसार यह स्ट्रींग सिद्धांत की सबसे बड़ी असफलता है।

स्ट्रींग सिद्धांत का भविष्य

इस सिद्धांत का भविष्य इस सिद्धांत के जैसे ही अस्पष्ट है। यह एक बेहतरीन गणितीय माडेल है जिसने अनेक प्रश्नो का उत्तर दिया है लेकिन कई नये प्रश्न भी खड़े किये है। इस सिद्धांत द्वारा परीक्षण के योग्य पूर्वानुमान न लगा पाने की असमर्थता इस पर कई प्रश्न चिह्न खड़े  करती है लेकिन यह सिद्धांत अभी तक पूरी तरह से विकसित नही हुआ है। भविष्य मे शायद यह सिद्धांत इन प्रश्न चिह्नो का उत्तर देने मे समर्थ हो।
(समाप्त) : यह श्रृंखला इस लेख के साथ समाप्त होती है। इस श्रृंखला के कुछ लेख जटिल हो गये है, उन लेखों को दोबारा सरल भाषा मे प्रस्तुत करने का मेरा मेरा प्रयास रहेगा।
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*10520  : 10 के पश्चात 520 शून्य